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पितृपक्ष: पितरों की मुक्ति के लिए मुक्तिधाम गया से श्रेष्ठ कोई नहीं

पितृपक्ष: पितरों की मुक्ति के लिए मुक्तिधाम गया से श्रेष्ठ कोई नहीं

गया 21 सितम्बर (वार्ता) बिहार के गया में चल रहे विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले की रौनक दिनोंदिनों लगातार बढ़ती जा रही है। पितरों की मुक्ति की कामना लिए देश-विदेश से गया आने वाले पिंडदानियों का तांता लगा हुआ है। विश्व में मुक्तिधाम के रूप में विख्यात गयाधाम को पितरों के श्राद्ध और तर्पण करने के लिए श्रेष्ठ दूसरा नहीं है। लोकमान्यता के अनुसार , गयाधाम में स्वयं भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में निवास करते हैं। गया में श्राद्ध कर्म पूर्ण करने के बाद भगवान विष्णु के दर्शन करने से मनुष्य पितृ, माता और गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता है। अतिप्राचीन विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के पदचिह्न आज भी साफ तौर देखे जा सकते हैं जो उनके मौजूदगी का सुखद अहसास देते हैं। पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए गया से श्रेष्ठ कोई दूसरी जगह नहीं है। गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किए जाने का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार , गयासुर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। भगवान से मिले आशीर्वाद का दुरुपयोग करके गयासुर ने देवताओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया। गयासुर के अत्याचार से दुःखी देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वह गयासुर से देवताओं की रक्षा करें। इस पर विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध कर दिया। बाद में भगवान विष्णु ने गयासुर के सिर पर एक पत्थर रख कर उसे मोक्ष प्रदान किया। 


        गया के प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर में वह पत्थर आज भी मौजूद है। भगवान विष्णु द्वारा गदा से गयासुर का वध किए जाने से उन्हें गया तीर्थ में मुक्तिदाता माना गया। कहा जाता है कि गया में यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान करने से मनुष्य को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। वहीं गया शहर से करीब आठ किलामीटर की दूरी पर स्थित प्रेतशिला में पिंडदान करने से पितरों का उद्धार होता है। प्रेतशिला पर्वत का विशेष महत्व है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस पर्वत पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंच जाता है जिनसे उन्हें कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्रों के अनुसार पिंडदान के लिए तीन जगहों को सबसे विशेष माना गया है। पहला है बद्रीनाथ जहां ब्रह्मकपाल सिद्ध क्षेत्र में पितृदोष मुक्ति के लिए तर्पण का विधान है। दूसरा है हरिद्वार जहां नारायणी शिला के पास लोग पूर्वजों का पिंडदान करते हैं और तीसरा है गया। कहा जाता है पितृ पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। 


 

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