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महोबा में रोटी बैंक की स्थापना के बाद मजलूमों का सहारा बनी “नेकी की दीवार”

महोबा में रोटी बैंक की स्थापना के बाद मजलूमों का सहारा बनी “नेकी की दीवार”

महोबा 11अक्टूबर (वार्ता) सूखाजनित कारणों से बदहाली का शिकार बने उत्तर प्रदेश में बुन्देलखण्ड के महोबा मे कोई भूखा न सोये के उद्देश्य के साथ पूर्व में स्थापित “रोटी बैंक” के बाद मुफलिसी से जूझ रहे गरीबों और मजलूमों को अब “नेकी की दीवार” का सहारा मिल रहा है। शहर के चरखारी बाईपास रोड में एक भवन में स्थापित की गई “नेकी की दीवार” इन दिनों नागरिकों के कौतूहल का केन्द्र बनी है। अमानत फाउन्डेशन के अमृत शुक्ला ने बताया कि आम दीवारों से भिन्न नेकी की दीवार में पर्दे के पीछे प्रेम परोपकार और पुण्य लाभ अर्जित करने की भावना निहित है। उन्होने बताया कि दीवार में सामग्री एकत्र व वितरित होने की प्रक्रिया स्वयं सेवा पर आधारित है। किसी की मदद के उद्देश्य से लोग अपने घरों से अनुपयोगी वस्तुये लाकर दीपार में स्थित खूटियों पर टाॅग देते है और जरूरत मन्द व्यक्ति किसी से बगैर कुछ पूछे अपनी आवश्यक्ता की सामग्री उठा कर अपने साथ ले जाता है। संगठन के कार्यकर्ता बगैर टोकाटाकी के मौके पर केवल निगरानी का कार्य करते है। “जो आपके पास अधिक है उसे यहाॅं छोड जायें और जिसकी आपको जरूरत है उसे ले जायें” के स्लोगन के साथ यहाॅ सामाजिक संगठन अमानत फाउन्डेशन ने एक दीवार उन परेशान हाल लोगों के लिये तैयार की है जो अपनी तमाम जरूरतों को पूरा करने के लिये दूसरों के आगे हाथ फैलाने को मजबूर होते थे।


          श्री शुक्ला ने बताया कि गरीब और निर्बल वर्ग के बच्चों को पठन-पाठन के संसाधन और सामग्री नि:शुल्क मुहैया कराने, अनपढ ग्रामीणों तथा किसानों को राजस्व सम्बन्धी दस्तावेज तथा प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने जैसे सामाजिक सेवा के कार्यक्रमों को विगत कई वर्षो से संचालित कर रहे अमानत फाउन्डेशन को “नेकी की दीवार” की स्थापना की प्रेरणा बैंक अधिकारी सिद्वार्थ सोनी से मिली। उन्होंने बताया कि अपने दान को गोपनीय रखने वाले समाज के बडे वर्ग द्वारा ‘नेकी की दीवार’ को लगातार समृद्व किया जा रहा है। इस सेवा कार्य की लोकप्रियता को देखते हुये संगठन जल्द ही बुन्देलखण्ड के अन्य नगरों में भी “नेकी की दीवार ” के स्थापना की योजना बना रहा है। रोटी बैंक के संचालक तथा बुन्देली समाज के संयोजक तारा पाटकार ‘नेकी की दीवार’ को दीनहीनों की सेवा का अभिनव तथा आद्वितीय तरीका बताते हैं। उन्होने कहा कि इससे दान दाताओं को सुपात्र तलाशने के झंझट से भी मुक्ति मिलेगी। धनी परिवारों द्वारा छुटपुट खराबी में फेंक दी जाने वाली तमाम वस्तुये लोगों के काम आयेगी। ऐसे में गरीबों के मुख से दुआओं के रूप में निकलने वाले शब्द बुन्देलखण्ड को भी समृद्वि की ओर ले जायेगें। 


 

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