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अपनी अलग परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है सुल्तानपुर की दुर्गापूजा

सुल्तानपुर, 10 अक्टूबर (वार्ता) उत्तर-प्रदेश के सुल्तानपुर की ऐतिहासिक एवम् अनूठी दुर्गापूजा महोत्सव देश भर से अलग परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है। सांप्रदायिक सौहार्द्र अौर सद्भावना की मिसाल और देश भर से अनूठी परम्पराओं वाली दूर्गापूजा महोत्सव में एक तरफ जहां मोहर्रम की मजलिसों में सदाये गूँज रहीं है वहीं दूसरी तरफ भव्य दुर्गाजी के पंडाल में जयकारों के बीच आरती-पूजन हो रहा है। यही नहीं दुर्गा पूजा महोत्सव में मुस्लिमों की सक्रिय भागीदारी देखने को भी मिलती है जो सद्भावना और सांप्रदायिकता की एक बेहतर मिसाल है। यहां की अनूठी दुर्गापूजा का जोरदार आगाज सद्भावनापूर्ण माहौल में विजयादशमी (दशहरा) से होगा। विजयादशमी को जब देश भर में दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन हो जाता है। उसी दिन से सुल्तानपुर में दुर्गापूजा महोत्सव की शुरुआत होती है।


          पूर्णिमा की शाम को भव्य शुभारम्भ के साथ करीब 170 दुर्गा प्रतिमाओं की सामूहिक झॉकियाँ निकलती है। जिसमें विभिन्न प्रदेशों एवं जिलों की नाट्य झाकियाँ एवं बैण्डपार्टियॉ शामिल होती है। जिनके सुर और लय पर दुर्गाभक्त बिना थके करीब 48 घण्टे तक नाचते- थिरकते रहते है। करीब 48 घण्टे तक अनवरत चलने वाली शोभायात्रा नगर के विभिन्न मार्गो से होकर करीब 36 घंटे बाद पहली दुर्गा प्रतिमा आदि गंगा गोमती के पावन तट सीताकुंड घाट पर पहुँचती है। जिसका विसर्जन करीब 12 घंटे लगातार तक चलता है। इस व्यवस्था में लगे सुरक्षा कर्मी, चिकित्सा टीम और प्रशासनिक अधिकारी इस लम्बे समय से थक जाते है किन्तु मां दुर्गा के भक्तों का जज्बा और भक्ति देखने लायक होता है। दुर्गापूजा महोत्सव में प्रतिदिन शहर तथा आसपास के जिलों से लाखो दर्शनार्थी आते है। जिनके रहने, खाने, चिकित्सा और सुविधाओं का ध्यान समाजसेवी तथा स्वयं सेवी संस्थाये रखती हैं। इनमें मुस्लिम भाइयों की भागीदारी उल्लेखनीय है। कई पूजा समितियों में मुस्लिम बंधु पदाधिकारी तथा सदस्य है।  


         गगनचुम्बी पंडालो का निर्माण अधिकतर मुस्लिम कारीगरों द्वारा ही किया जाता है। इस वर्ष मोहर्रम और दुर्गापूजा साथ-साथ संपन्न हो रहे है। लेकिन मुस्लिम भाइयों की सूझबूझ से समय में कुछ परिवर्तन करके ताजियाें का जुलूस निकाल लिया जाता है और हिन्दू अपनी व्यवस्थाओं को भी उनकी सुविधा के अनुसार करते हैं। शहर का अमहट क्षेत्र शिया मुस्लिम बाहुल्य है। यहॉं अजादारी पर सुबह से लेकर देर रात तक मजलिसों और जुलूसों का दौर चलता है। जिसमें हजरत इमाम हुसैन सहित उनके 72 शहीद साथियों की याद में सदायें गूँजती रहती है। हर शख्स गमजदा होता है वही चंद दूरी पर सजे दुर्गाजी के पंडालों पर लगे लाउडस्पीकर से गीत और भजन की आवाज गूंजती रहती है तथा हवन- पूजन चलता है। बिना किसी भेदभाव के दोनों सम्प्रदायों के कार्यक्रम शांति से और सफलता पूर्वक सम्पन्न होते हैं। शिया वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष हैदर अब्बास खॉं कहते है कि हिदुस्तान ही एक ऐसा देश है जहॉ हर धर्म को अपने- अपने तरीके से धार्मिक कार्यक्रम करने की आजादी है तो फिर किसी को किसी के आयोजन पर आपत्ति क्यों हो सकती है। उन्होंने कहा कि यजीद ने इमाम हुसैन से यही आजादी छीनी थी जिसके लिए कर्बला का जंग हुआ। हम हमेशा एक दूसरे के आयोजन में सहयोग की भावना रखते है।


         दुर्गापूजा समितियों की केंद्रीय पूजा व्यवस्था समिति के महामंत्री सुनील कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि इस वर्ष पूजा पंडालो में नवरात्रि के प्रथम दिवस को ही कलश स्थापना हो गयी थी और सात अक्टूबर को मूर्तियों की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा, 09 और 10 को महाष्टमी का पूजन, के साथ 11 को विजयादशमी,12 को भरत मिलाप,15 को पंडालो पर पूर्णाहुति की जायेगी और 16 अक्टूबर को विसर्जन के लिए शोभायात्रा का शुभारंभ होगा। उन्होंने बताया कि परम्परानुसार इसमें किसी राजनीतिक व्यक्ति को न बुलाकर जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से ही शोभयात्रा का शुभारम्भ कराया जाता है। इस शोभा यात्रा में मुस्लिम भाइयों का उल्लेखनीय सहयोग रहता है। श्रद्धालुओं की सहायता, सुरक्षा और सहयोग के लिए वह भी रातभर जागते हैं। गौरतलब है कि1959 में ठठेरी बाजार में भिखारी लाल सोनी द्वारा पहली दुर्गाप्रतिमा स्थापित की गयी थी। आज शहरी क्षेत्र में बढकर करीब 200 प्रतिमायें स्थापित हो रही है। इस पूजा महोत्सव को देखने के लिए आसपास के प्रतापगढ, वाराणसी, जौनपुर, फैज़ाबाद, अम्बेडकरनगर, बाराबंकी, उन्नाव, रायबरेली आदि जिलों से भक्त दर्शन और पूजा के लिए आते हैं। रात्रिभर दुर्गा प्रतिमाओ का दर्शन करते हैं। 


 

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