नयी दिल्ली, 04 अप्रैल (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने एक पेंशन योजना लागू करने में नाकाम रहने पर पंजाब सरकार की शुक्रवार को आलोचना की और चेतावनी देते हुए कहा अब यदि सरकार विफल हुई तो अदालत उसे प्रत्येक याचिकाकर्ता को कम से कम 25 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश देगी।
न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने पंजाब के मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह चेतावनी दी। याचिका में योजना के कार्यान्वयन के संबंध में राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा की गई पूर्व प्रतिबद्धता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था।
अदालत ने निजी तौर पर संचालित पंजाब सरकार के संबद्ध और राज्य सरकार द्वारा सहायता प्राप्त कॉलेज पेंशन लाभ योजना 1986 को लागू करने में विफल रहने और पात्र लाभार्थियों को उनके पेंशन संबंधी अधिकारों से वंचित करने के लिए कड़ी आलोचना की।
सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने सेवानिवृत्ति के समय ही अपनी अंशदायी भविष्य निधि (सीपीएफ) निकाल ली थी। उन्होंने प्रभावित व्यक्तियों के लिए एक लाख रुपये का मुआवजा देने का सुझाव दिया। अदालत ने हालांकि इस राशि को अपर्याप्त बताते हुए दृढ़ता से खारिज कर दिया।
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति ओका ने टिप्पणी की, "एक लाख रुपये की दलील हमारे कानों तक भी नहीं पहुंच रही है। हम पर्याप्त मुआवजा देंगे।" उन्होंने आगे कहा कि अगर सरकार कार्रवाई करने में विफल रहती है, तो अदालत राज्य को प्रत्येक याचिकाकर्ता को कम से कम 25 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश देगी। ये राशि योजना के गैर-कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार लोगों से वसूला जाएगा।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने राज्य के रुख का विरोध किया, पंजाब निरसन अधिनियम को "पूरी तरह से अवैध" कहा और इस बात पर जोर दिया कि पेंशन निर्धारण के परिणामस्वरूप सेवानिवृत्त कर्मचारियों को प्रति माह 1.5 लाख रुपये का भुगतान होगा।
अदालत ने पंजाब द्वारा अपने आश्वासनों को अमल करने में बार-बार विफल रहने पर भी कड़ी आपत्ति जताई।
न्यायमूर्ति ओका ने चेतावनी दी, "यदि राज्य अड़ा हुआ है, तो हम जानते हैं कि राज्य से कैसे निपटना है। हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि अदालत के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है। हमने पहले भी दर्ज किया है कि धोखा दिया गया है।"
पंजाब के मुख्य सचिव केएपी सिन्हा वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए।
पीठ ने सवाल किया कि क्या महाधिवक्ता (एजी) द्वारा की गई पिछली प्रतिबद्धताओं का कोई महत्व है, यदि सरकार उनकी (प्रतिबद्धताओं) अवहेलना करना जारी रखती है। न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि एजी द्वारा दिए गए किसी भी बयान के साथ संबंधित राज्य अधिकारी का हलफनामा होना चाहिए।
श्री सिंघवी ने अटॉर्नी जनरल का बचाव करते हुए कहा कि प्रयास किए गए थे, लेकिन वे सफल नहीं हुए।
शीर्ष अदालत ने अनुपालन के लिए अंतिम अवसर प्रदान करते हुए मामले को 15 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
अदालत ने चेतावनी दी कि यदि कोई समाधान नहीं निकला, तो वह मौद्रिक मुआवजे का निर्देश देते हुए अंतिम आदेश पारित करेगी।
बीरेंद्र, यामिनी
वार्ता