नयी दिल्ली, 16 जनवरी (वार्ता) कांग्रेस पार्टी ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए आवश्यक कानून बताया और इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं के विरोध में गुरुवार को उच्चतम न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दायर की।
केंद्र की मुख्य विपक्षी पार्टी ने अपनी याचिका में दावा किया कि भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए यह कानून आवश्यक है। इस कानून को चुनौती (शीर्ष अदालत के समक्ष) धर्मनिरपेक्षता के स्थापित सिद्धांतों को कमजोर करने का एक प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण प्रयास प्रतीत होता है।
हस्तक्षेप याचिका में कहा गया है कि यह कानून संसद द्वारा अधिनियमित होने के कारण यह भारत वासियों के जनादेश को दर्शाता है।
कांग्रेस ने शीर्ष अदालत के समक्ष इस हस्तक्षेप याचिका के माध्यम से कहा, “वास्तव में, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की परिकल्पना वर्ष 1991 से पहले की गई थी और इसे संसदीय चुनावों के लिए आवेदक के तत्कालीन चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा बनाया गया था।”
यह कानून धार्मिक स्थलों की 15 अगस्त 1947 को मौजूद स्थिति की रक्षा के लिए था, जो 1991 में तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा बनाया गया था। उस समय 'राम मंदिर' आंदोलन चरम पर था।
पार्टी ने अपने आवेदन में कहा, “इसमें (कानून में) कोई भी बदलाव भारत के सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को खतरे में डाल सकता है, जिससे राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को खतरा हो सकता है।”
कांग्रेस पार्टी ने हस्तक्षेप याचिका में यह भी कहा कि यह कानून संविधान के भाग तीन में उल्लिखित किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।
हस्तक्षेप याचिका में कहा गया, “इसके विपरीत, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 और 28 में निहित धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को साकार करता है।”
हस्तक्षेप याचिका में यह भी कहा गया है कि सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने और देश में सभी समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के लिए यह कानून आवश्यक है।
शीर्ष अदालत ने 1991 के इस कानून के खिलाफ कई याचिकाओं पर 12 दिसंबर 2024 को सुनवाई करते हुए सभी अदालतों को नए मुकदमों पर विचार करने और धार्मिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने की मांग करने वाले लंबित मामलों में कोई भी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया था।
शीर्ष अदालत ने 1991 के इस कानून के कार्यान्वयन के लिए गैर सरकारी संगठनों जमीयत उलमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा दायर याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया था।
कांग्रेस पार्टी ने आवेदन के माध्यम से अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय और अन्य की ओर से दायर याचिका को पूरी तरह से खारिज करने का समर्थन करने वाले महत्वपूर्ण प्रस्तुतियाँ देने की मांग की।
उपाध्याय की मुख्य याचिका सहित कई याचिकाओं के जरिए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी गई है।
बीरेंद्र अशोक
वार्ता