जिनेवा/नयी दिल्ली 14 अक्टूबर (वार्ता) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में संसदों के बीच व्यापक संवाद और सहयोग मानव कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक है और विश्व की सभी संसदों मिलकर इनके लाभों का उचित और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना चाहिए।
जिनेवा में अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) की 149वें सम्मेलन में भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे श्री बिरला ने सोमवार को ‘शांतिपूर्ण और सुरक्षित भविष्य के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार का उपयोग’ विषय पर सभा को संबोधित किया। उन्होंने वर्तमान समय की कुछ महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए इस पर भारत का दृष्टिकोण रखा और कहा कि भारत हमेशा से बहुपक्षवाद का प्रबल समर्थक रहा है। उन्होंने कहा कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में संसदों के बीच व्यापक संवाद और सहयोग मानव कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आईपीयू जैसे मंच के माध्यम से संसदें साझी कार्य योजनाओं और साझे प्रयासों के द्वारा सम्पूर्ण विश्व के लिए समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त करने में सफल होंगी। उन्होंने कहा कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में संसदों के बीच व्यापक संवाद और सहयोग मानव कल्याण के लिए अत्यंत आवश्यक है और विश्व की सभी संसदों को मिलकर विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के लाभों का उचित और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने तकनीकी प्रगति, वैज्ञानिक शोध और नवाचार को प्रोत्साहित करने का आह्वान किया।
श्री बिरला ने जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा के बारे में विचार व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई ‘वन सन, वन वर्ल्ड , वन ग्रीड’ की पहल का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि पिछले दशक में भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 76 गीगावाट से बढ़कर 203 गीगावाट हो गई है। उन्होंने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, बायो फ्यूल गठबंधन जैसी पहलों का भी उल्लेख किया, जो जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं। इस संबंध में भारतीय संसद द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और सतत विकास लक्ष्यों के मुद्दों पर संसद में विस्तार से चर्चा की गई है। उन्होंने कहा कि नए भवन के निर्माण में हरित प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया गया है, जो हरित ऊर्जा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
भारत द्वारा विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार को दी जा रही प्राथमिकता का उल्लेख करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा,“भारत में स्टार्ट-अप इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत नवाचार, प्रौद्योगिकी और उद्यमिता को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है।” उन्होंने बताया कि 355 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य वाले 118 यूनिकॉर्न के साथ आज भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप राष्ट्र बन गया है । उन्होंने बताया कि जन धन, आधार और मोबाइल की जेएएम ट्रिनिटी के माध्यम से वित्तीय सेवाओं के डिजिटलीकरण और वित्तीय समावेशन के द्वारा 314 सार्वजनिक कल्याण योजनाओं के तहत खरब ( ट्रिलियन) 495 अऱब रुपये के वित्तीय लाभ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से लाभार्थियों के बैंक खातों मे डाले गए हैं, जिससे शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हुई है।
उन्होंने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक उपयुक्त नियामक प्रणाली, नागरिकों की डाटा गोपनीयता की सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धि (एआई) के उचित उपयोग और प्रौद्योगिकी के लाभों को समान रूप से साझा करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर आईपीयू मंच के साथ-साथ राष्ट्रीय संसदों में भी चर्चा की जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि भारत की संसद ने पिछले कुछ वर्षों में व्यापक चर्चा के बाद प्रौद्योगिकी, विज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में डिजिटल निजी डाटा संरक्षण विधेयक, दूरसंचार विधेयक, ऊर्जा संरक्षण विधेयक और जैव विविधता विधेयक आदि जैसे कई विधेयक पारित किए हैं ।
उन्होंने बताया कि भारत की संसद में डिजिटल संसद एप्लिकेशन से न केवल संसद को पेपरलेस बनाया गया है, बल्कि सूचना प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के उपयोग से संसद की दक्षता को भी बढ़ाया गया है। इससे सभी सदस्यों, भारत सरकार के सभी मंत्रालयों और सभी हितधारकों को एक एकीकृत मंच पर लाया गया है। उन्होंने कहा कि कीवर्ड, मेटा डेटा और उन्नत खोज की एआई सुविधाओं की मदद से संसद से संबंधित डाटा को और अधिक उपयोगी बनाया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि अंतर संसदीय संघ राष्ट्रीय संसदों का वैश्विक संगठन है। इसकी स्थापना 1889 में दुनिया के पहले बहुपक्षीय राजनीतिक संगठन के रूप में की गई थी । यह संघ सभी देशों के बीच सहयोग और संवाद को प्रोत्साहित करता है। मौजूदा समय में आईपीयू में 180 देशों की संसदें और 15 क्षेत्रीय संसदीय निकाय शामिल हैं। यह संघ लोकतंत्र को बढ़ावा देने के साथ ही संसदों को अधिक सशक्त, युवा, हरित, महिलाओं के प्रति संवेदनशील और नवाचार के प्रति उन्मुख संस्थाओं के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
संतोष.संजय
वार्ता