नयी दिल्ली, 07 दिसंबर (वार्ता) भारतीय फिल्म निर्देशक एवं पटकथा लेखक सुधीर मिश्रा ने कहा कि वह दुर्घटनावश फ़िल्म निर्माता बन गये।
जागरण फिल्म फेस्टिवल (जेएफएफ)में यहां उपस्थित प्रसिद्ध कलाकार और फिल्म उद्योग के दिग्गज शामिल हुए। इन्हीं में से एक था सुधीर मिश्रा का प्रेरणादायक पैनल डिस्कशन, जिसमें उन्होंने “भारतीय सिनेमा के बदलते परिदृश्य” विषय पर अपने विचार साझा किए। स्वतंत्र भारतीय सिनेमा के प्रख्यात निर्देशक सुधीर मिश्रा, जो सामाजिक और विचारोत्तेजक विषयों पर आधारित फिल्मों के लिए जाने जाते हैं, ने इस सत्र को डिम्पी मिश्रा के साथ प्रस्तुत किया।
अपनी सिनेमा यात्रा को याद करते हुए सुधीर मिश्रा ने कहा, "मैं दुर्घटनावश फिल्म निर्माता बन गया।"
सच्ची कहानियों के निर्माण पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "जब आपके पास जिज्ञासा और खुला दिमाग होता है, तो आप लोगों और उनकी कहानियों को बेहतर समझ सकते हैं। वर्गवाद और पूर्वाग्रहों को छोड़ना होगा। जब आप उन कहानियों में गहराई से उतरते हैं जिनसे आप खुद को नहीं जोड़ सकते, तभी आप उन्हें प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। मैं एक एंटीना की तरह हूं, कहानियों को आकर्षित करता हूं।"
तेज़ी से बदलती फिल्म इंडस्ट्री में रचनात्मकता की भूमिका पर सुधीर मिश्रा ने कहा, "मुझे आज की युवा पीढ़ी से ईर्ष्या नहीं होती। अब औसत दर्जे की कोई गुंजाइश नहीं है। एआई साधारण कहानियां लिख सकता है, लेकिन सच्चा जुनून और जोश अपूरणीय है। अगर आपके पास मौलिकता की कमी है, तो आप अलग नहीं दिखेंगे।"
अपनी रचनात्मक प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "सिनेमा एक निरंतर पुनर्लेखन की प्रक्रिया है। अगर मैं पहले से ही कहानी का अंत और शुरुआत जानता हूं, तो यह मुझे रुचिकर नहीं लगती।"
अपने उत्तराधिकार (लीगेसी) पर पूछे गए सवाल पर सुधीर मिश्रा ने कहा, "यदि मैंने अपने काम के साथ न्याय किया है, तो दुनिया मुझे याद रखेगी। अगर नहीं, तो मुझे भुला दिया जाना चाहिए। फिल्म निर्माता इस उद्योग के निर्माणकर्ता हैं। हमें अपनी फिल्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि अपनी लीगेसी पर।"
समीक्षा प्रेम
वार्ता