गर्नजी 10 जनवरी (वार्ता) लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि अगले साल भारत में आयोजित होने वाले 25वें कॉमनवेल्थ देशों की संसदों के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन (सीएसओपीसी) का मुख्य फोकस संसदों के कामकाज में एआई और सोशल मीडिया के अनुप्रयोग पर होगा।
श्री बिरला ने यह टिप्पणी गर्नजी में शु्क्रवार को आयोजित सीएसपीओसी की स्टैंडिंग कमेटी की बैठक की अध्यक्षता करते हुए की।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में हो रहे परिवर्तन का जिक्र करते हुए, कहा कि भारत अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप के लिए तीसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम बन गया है। उन्होंने कहा कि भारत कई क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन से गुजर रहा है जैसे कि कृषि, फिनटेक, एआई, और अनुसंधान और नवाचार। उन्होंने यह भी बताया कि भारत के पास अब विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा और सेवा क्षेत्र है और उन्हें उम्मीद है कि अगले साल जब गणमान्य व्यक्ति सीएसपीओसी के लिए भारत आएंगे तो वे देश की विरासत और प्रगति के अद्वितीय मिश्रण का अनुभव करेंगे।
उन्होंने लोकतंत्र के संरक्षक, विकास को गति देने वाले और लोक कल्याण के संवाहक के रूप में संसदों की भूमिका पर बल देते हुए जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और साइबर अपराध जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए संसदों को अधिक प्रभावी, समावेशी और पारदर्शी बनाने के महत्व पर प्रकाश डाला।
उन्होंने सुशासन को बढ़ावा देने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए संसदीय संस्थाओं को अधिक प्रभावी, समावेशी और पारदर्शी बनाने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। श्री बिरला ने कहा कि सीएसओपीसी मंच सदस्य देशों को सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने, संसदीय सहयोग को मजबूत करने और एक न्यायसंगत तथा समतापूर्ण भविष्य के निर्माण की दिशा में मिलकर काम करने के लिए एक अमूल्य अवसर प्रदान करता है ।
उन्होंने 2026 में 28वें सीएसपीओसी के मेजबान के रूप में भारत को चुने जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इससे भारत को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और समावेशिता और सद्भाव की सदियों पुरानी परंपराओं को विश्व के साथ साझा करने का अनूठा अवसर मिलेगा।
श्री बिरला ने वैश्विक सहयोग और एकता के मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में वसुधैव कुटुम्बकम- "पूरा विश्व एक परिवार है" के प्राचीन भारतीय दर्शन की प्रासंगिकता के बारे में भी बात की।
उन्होंने संसदों द्वारा सतत विकास और सुशासन को बढ़ावा दिए जाने तथा गरीबी, असमानता और कुपोषण जैसी चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान किए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए नीतियों तैयार करने , संसाधनों का विवेकपूर्ण आवंटन करने और अधिक न्यायसंगत और समावेशी भविष्य के निर्माण में सरकारों का मार्गदर्शन करने की सांसदों की भूमिका पर बल दिया।
जांगिड़
वार्ता