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भारत


‘नृत्यधारा-द्वितीय’ के तहत भरतनाट्यम की मोहक प्रस्तुति

नयी दिल्ली, 11 जनवरी (वार्ता) भरतनाट्यम की शाश्वत विरासत पर आधारित कार्यक्रम ‘नृत्यधारा-द्वितीय’ के तहत राष्ट्रीय राजधानी के एलटीजी सभागार में शिवाष्टकम और माता सीता और भगवान राम की प्रथम भेंट की कथा पर आधारित मोहक प्रस्तुतियां की गयीं।
ये प्रस्तुतियां भरतनाट्यम में पारंगत नृत्य शिक्षिका सिंधु मिश्रा के नृत्य संयोजन और कोरियोग्राफ का दर्शकों ने भाव विभोर होकर आनंद लिया।
यह आयोजन भरतनाट्यम के पारंपरिक ‘बानी’ पर आधारित था, जिसे शिक्षक केएन दंडयुधापाणि पिल्लई ने विकसित किया था। नृत्यधारा ने नृत्य (शुद्ध नृत्य), भाव (अभिव्यक्ति) और ताल (लय) के जटिल समन्वय को जीवंत कर दिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ पुष्पांजलि से हुआ, जिसमें रागम बौली और तालम आदि पर आधारित एक दिव्य प्रस्तुति दी गई। यह प्रस्तुति गुरु, देवता और दर्शकों को समर्पित थी। इसके बाद, ध्यान ‘श्लोकम’ प्रस्तुत किया गया, जो भगवान शिव के अद्वितीय स्वरूप को समर्पित था। इसे प्रसिद्ध संगीतकार सुधा रघुरामन ने रचा और इसमें शिव के वैश्विक तथा ब्रह्मांडीय स्वरूप को चित्रित किया गया।
प्रत्येक प्रस्तुति में भरतनाट्यम की शास्त्रीयता और रचनात्मकता का अद्भुत मेल देखने को मिला। शिवाष्टकम में भगवान शिव की महानता को राग भूपाली और ताल खंड चापू पर प्रस्तुत किया गया। इसमें भगवान शिव को असुरों के विनाशक, गणेश के स्नेही पिता, और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रतीक के रूप में दिखाया गया।
इसके बाद तुलसीदास जी के भजन श्री राम चंद्र पर आधारित भरतनाट्यम प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। राग सिंधु भैरवी और आदि ताल पर आधारित इस प्रस्तुति में भगवान राम के गुणों को अत्यंत भावुकता से प्रस्तुत किया गया।
पदम, ‘यारो इवर यारो’ में माता सीता और भगवान राम की प्रथम भेंट को भावनात्मक गहराई के साथ प्रस्तुत किया गया। राग भैरवी और ताल आदि पर आधारित इस प्रस्तुति ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। इसके अलावा, भो शंभो और तिल्लाना जैसे नृत्यांशों ने भी दर्शकों को अद्भुत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान किया।
गुरु सिंधु मिश्रा ने कहा,“नृत्यधारा द्वितीय समर्पण, श्रद्धा और भरतनाट्यम की शाश्वत सुंदरता का उत्सव है। दर्शकों का अपार स्नेह और समर्थन इस कला रूप की अमरता को प्रमाणित करता है। हमारा उद्देश्य, इस अद्भुत परंपरा को संरक्षित रखना तथा नई पीढ़ी को इसकी ओर प्रेरित करना है।”
‘नृत्यधारा द्वितीय’ न केवल एक नृत्य प्रस्तुति थी, बल्कि यह भरतनाट्यम की समृद्धता और विविधता का जीवंत उत्सव था।
श्रद्धा.संजय
वार्ता
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