नयी दिल्ली 10 जनवरी (वार्ता) भारत के खगोल वैज्ञानिकों ने धरती से 75 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर आकाशगंगा में एक चर्चित बाइनरी ब्लैक होल की एक्स-किरणों में लौह-उर्त्सन के चिह्न देखें हैं जिससे उस ब्लैक-होल प्रणाली के गुणों के अध्ययन में आसानी होगी।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक विज्ञप्ति के अनुसार और किसी बायनरी ब्लैक होल में एक्स-रे के साथ लौह तत्व के उत्सर्जन को देखा गया है। बायनरी अथवा जुड़वा ब्लैक होल (कृष्ण विवर) प्रणाली में एक ही घेरे में दो-ब्लैक होल सक्रिय रहते हैं।
इस खोज में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान-भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के खगोलविद शांतनु मोंडल और मौसमी दास, एनआईएसईआर के अनिकेत नाथ, नॉर्वे की रुबिनूर खातून, अमेरिका की करिश्मा बंसल और न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय, अमेरिका के ग्रेग बी. टेलर शामिल है। उनका इस अध्ययन के परिणाम एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (एएंडए) पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
कृष्ण विवर सुदूर अंतरिक्ष में ऐसे शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र होते हैं जो प्रकाश की किरणों सहित हर खगोलीय पिंड को अपने गर्भ में खींच लेते हैं। ब्लैक होल के प्रभाव में क्षेत्र या क्षितिज में पहुंच कर कोई प्रकाश सहित कोई भी चीज बार नहीं आती है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की शुक्रवार को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार रेडियो आकाशगंगा के 4सी+37.11 बाइनरी ब्लैक होल सिस्टम के एक्स-रे में आयरन लाइन की खोज की गई है। आयरन-उत्सर्जन के ये संकेत उस ब्लैक होल के गुणों को समझने में मदद कर सकते हैं।
विज्ञप्ति के अनुसार आईआईए के खगोलविदों द्वारा किए गए एक अध्ययन में चंद्रा स्पेस टेलीस्कोप से प्राप्त डेटा का उपयोग करके यह खोज की है। निष्कर्ष निकाला गया है कि लौह-तत्व का उत्सर्जन उस जुड़वा ब्लैक होल के केंद्र से दूर की परिधि में गुरुत्वाकषर्ण से जुटे पदार्थों और घर्षण जनित आयनित प्लाज्मा दोनों से उत्पन्न होता है।
आईआईए में रामानुजम फेलो और इस विषय पर प्रकाशित शोध-पत्र के प्रमुख लेखक शांतनु मोंडल ने कहा, “हमने 4सी+37.11 के निरीक्षण का निर्णय लिया, जो एक ऐसी ही आकर्षक और अनोखी खगोलीय वस्तु है। इस जुड़वा ब्लैक होल प्रणाली का पता 2004 में लगा था जिसमें दो केंद्र या विवर हैं, जो परस्पर मात्र 23 प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। इन दो जुड़वा कृष्ण विवरों की निकटता इन्हें एक विशेष चरम परिवेश में उनकी गतिशीलता और अंतःक्रियाओं के अध्ययन को एक दुर्लभ और मूल्यवान अवसर बनाती है।
आईआईए की मौसमी दास और अध्ययन की सह-लेखिका ने कहा है कि हालांकि एफई (फेरस यानी लौह) के उत्सर्जन की रेखाएं कई नज़दीकी एसएमबीएच से पाई गई हैं, लेकिन इस एसएमबीएच बाइनरी सिस्टम में इससे पहले किसी ने कभी नहीं देख्री थी। ऐसी वर्णक्रमीय रेखा एसएमबीएच के परस्पर विलय के बारे में कुछ नयी जानकारी प्रकट कर सकती है। अभी तक यह ज्ञात है कि दो ब्लैक होल के विलय के अंतिम क्षणों में गुरुत्वाकर्षण तरंगें भी उत्पन्न होती हैं।
श्री मोंडल ने कहा, “हमने चंद्रा से प्राप्त अभिलेखीय डेटा का उपयोग करके 4सी+37.11 का अध्ययन किया और पहली बार लौह-तत्व उत्सर्जन की रेखाएं खोजीं हैं। मॉडलिंग के माध्यम से हम अनुमान लगा सकते हैं कि यह लौह तत्व उत्सर्जन इन इन दोनों ब्लैक होल के चारों ओर गुरुत्वाकर्षण से जमा तत्वों और उनके आसपास टकराव से आयनित प्लाज्मा के संयुक्त प्रभावों से उत्पन्न होता है।”
उन्होंने कहा कि टीम ने इस बाइनरी एसएमबीएच का कुल द्रव्यमान सूर्य के 15 अरब गुना के बराबर निर्धारित किया है और यह धुरी पर निम्न गति से घूमता है।
उप्रेती, मनोहर
वार्ता