राज्य » पंजाब / हरियाणा / हिमाचलPosted at: Dec 20 2024 8:34PM सिंह का राजनीतिक विकल्प बनने का डर अकाली नेतृत्व को सता रहा: सरचंदअमृतसर 20 दिसंबर (वार्ता) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पंजाब के प्रवक्ता प्रो. सरचंद सिंह ने शुक्रवार को कहा कि तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को पंथ की जबरदस्त प्रतिक्रिया के कारण अकाली नेतृत्व को डर सता रहा है कि निकट भविष्य में वह उनका राजनीतिक विकल्प नहीं बन जाए। इसलिए वह लगातार बहानेबाजी से जत्थेदार को बदनाम करने पर तुले हुए हैं। इससे पहले, अकाली नेतृत्व के एक वर्ग ने महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति का समर्थन करने के लिए दमदमी टकसाल के प्रमुख और संत समाज के अध्यक्ष संत ज्ञानी हरनाम सिंह खालसा को निशाना बनाने की असफल साजिश रची थी। प्रो सरचंद सिंह ख्याला ने बादल अकाली नेतृत्व को अकाल तख्त साहिब के व्यक्तित्व को बौना करने की सोच और दृष्टिकोण अपनाने से रोका और कहा कि सिख परंपरा में किसी भी सिंह साहिब या तख्त साहिब के जत्थेदार के खिलाफ आरोपों की जांच करने का अधिकार क्षेत्र श्री अकाल तख्त साहब और हेड ग्रंथी श्री दरबार साहिब का हैं। बादल दल ने सीधे तौर पर श्री अकाल तख्त साहिब को दरकिनार करते हुए ज्ञानी हरप्रीत सिंह पर लगे आरोपों की जांच के लिए शिरोमणि कमेटी के माध्यम से अपने समर्थकों की एक जांच कमेटी का गठन किया है और इस बात का सबूत भी दिया है कि अकाली दल एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, जिसे दो दिसंबर को श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों को पूरा न करने में कोई डर नहीं है। प्रो ख्याला ने हैरानी जताई और कहा कि शिरोमणि कमेटी के मामलों में अकालियों का सीधा हस्तक्षेप इतना बढ़ गया है कि वे अब एक सिंह साहिब के बारे में 17 साल पहले तय किए गए मामले को फिर से खोलने आए हैं। राजनीति से प्रेरित यह फैसला उनकी नियत में खोट दिखा रहा है। उन्होंने आशंका जताई कि जत्थेदार को पद से हटाने के पीछे दो दिसंबर को सुखबीर सिंह बादल और अकाली नेतृत्व के खिलाफ सुनाए गए सैद्धांतिक फैसलों को बदलने की हो सकती है। जिनमें फख्र-ए-कौम का खिताब वापस लेना, अकाली दल की भर्ती के लिए एक समिति का गठन और विशेष रूप से वर्तमान नेतृत्व को राजनीतिक नेतृत्व के लिए अयोग्य ठहराना, इसके अलावा यह स्वीकार कराना भी शामिल है कि उन्होंने लगातार अनेक बार पंथ को धोखा दिया है। दो दिसंबर के सैद्धांतिक फैसलों ने दुनिया को श्री अकाल तख्त साहिब की आभा से अवगत कराया। यह सच है कि गुरु पंथ ऐसे किसी भी फैसले को बदलने से सावधान रहता है जिससे सांप्रदायिक भावनाएं जुड़ी हों। वहीं ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा है कि अगर उन्हें समग्र रूप से राजनीतिक नेतृत्व का मौका मिलेगा तो वे इस पर जरूर विचार करेंगे। अब जत्थेदार के स्वतंत्र व्यक्तित्व के प्रकटीकरण ने अकाली नेतृत्व को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि ‘यह आदमी अब हमारे काम का नहीं रहा।’ इसलिए उन्हें जाना पड़ा। उन्होंने कहा कि वोट की राजनीति लागू होने से पंथक सूरत से जत्थेदार चुनने की पंथक पद्धति समाप्त हो गई, आज तख्त साहिबानों के जत्थेदारों की नियुक्ति शिरोमणि कमेटी द्वारा की जाती है, जिस पर लंबे समय से अकाली दल का वर्चस्व रहा है। उन्होंने कहा कि भले ही जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के कार्यों से हर कोई सहमत न हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनके दूरदर्शी और ईमानदार प्रदर्शन ने जत्थेदार के पद की गरिमा को बहाल किया है। इससे देश-विदेश के सिखों में जत्थेदारों के प्रति आस्था जागृत हुई है। ठाकुर.संजय वार्ता